ज़ीस्त ने और भी गुलकरियाँ करना है अभी
देखते जाओ नये दर्द उभरना है अभी
फ़रेब, सब्र, तमन्ना, निबाह, मायूसी
ज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभी
मुन्तज़िर आँखें है वीरान दारीचों की तरह
तुम तो कहते थे कोई ख़्वाब गुजरना है अभी
उलझ गए हैं हसरतों के सुनहरे गेसू
याद की सब्ज़परी तुझको संवरना है अभी
कट गई राहे-सफ़र आज तलक ग़फ़लत में
ख़ल्वते-रूह वसद होश उतरना है अभी
बहार आने से पहले दियार-गुलशन में
शाख़ से टूटकर पत्तों को बिखरना है अभी
हमने जानी है हिफाज़त की हिक्मतें फ़ौजी
एक लाखौफ़ सफ़र तै हमें करना है अभी
-रामरज फ़ौजदार