उस दिन पहला सूर्य ग्रहण था- स्नेहलता नीर

जिस दिन तुम हो गये पराये,
उस दिन पहला सूर्य ग्रहण था

दिल ने चाहा साथ निभायें
छोटा सा संसार बसायें
टूटा दिल जब चले गये तुम,
रोती आँखें, बेबस मन था
उस दिन पहला सूर्य ग्रहण था

पहले दिल में प्रीत जगायी
इन प्राणों की प्यास बढ़ायी
तुमने ही मुख मोड़ लिया फिर
टूटा मेरा मन-दर्पण था
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

स्वप्न सँजोए थे जो हमने
सारे तोड़ दिये वे तुमने
टूटा शीशमहल सपनों का
उम्मीदों का हुआ क्षरण था
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

जो पल हमने साथ जिये थे
ख़ुशियों के जल रहे दिये थे
यादें तड़पातीं अब मुझको
क्या! वह केवल आकर्षण था
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

बीच राह में छोड़ गये तुम
नाता मुझसे तोड़ गये तुम
शायद मुझमें कमी रही कुछ,
मुश्क़िल मेरा क्षण-प्रति क्षण था ।
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

अंतर्मन में इतना ग़म था ।
आसमान भी रोकर नम था
तुमको तब भी तरस न आया,
धरती का रोया कण-कण था
उस दिन पहला सूर्य ग्रहण था

तुम! जो यों ना हाथ छुड़ाते
हम जीवन भर साथ निभाते
तुमने तो घरबार बसाया
मेरा एकाकी जीवन था
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

झूठे वादे ख़ूब किये थे
मैंने विष के घूँट पिये थे
जीवन बिखरा तिनका-तिनका
अब सोचूँ क्यों किया वरण था
उस दिन पहला सूर्यग्रहण था

-स्नेहलता नीर