प्रजनन संबंधी अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ अंतरा बैनर्जी को दिया गया एसईआरबी विमेन एक्सिलेंस अवार्ड

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और मुंबई के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ के स्ट्रक्चरल बायोलॉजी डिवीजन की वैज्ञानिक डॉ अन्तरा बैनर्जी को प्रजनन संबंधी तकनीक के लिए उपयोगी एन्डोक्रनालॉजी को समझने के मामले में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए 2021 का एसईआरबी विमेन एक्सिलेंस अवार्ड प्रदान किया गया है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड द्वारा शुरू किए गए इस पुरस्कार के तहत विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाली युवा महिला वैज्ञानिकों की अतुलनीय अनुसंधान उपलब्धियों को मान्यता दी जाती है और पुरस्कृत किया जाता है।

यह अध्ययन, प्रजनन के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन्स और उसके रिसेप्टर तथा महिलाओं में ओवा या अंडाणु का विकास कर प्रजनन कार्य में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले प्रोटीन्स से संबंधित है।

एफएसएचआर को लेकर डॉ बैनर्जी के मन में लम्बे समय से जिज्ञासा थी। अपने डॉक्टरल थीसिस में उन्होंने किसी भी स्तनधारी प्राणी के प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस हार्मोन रिसेप्टर के बारे में अनुसंधान किया था।

इस अनुसंधान ने बाद में उन्हें एफएसएचआर में उपस्थित कोशिकीय छोरों में मौजूद अवशेषों की पहचान करने में मदद की जो एफएसएच-एफएसएचआर के संपर्क के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और इस तरह जी-प्रोटीन युक्त रिसेप्टर के काम में इन कोशिकीय अवशेषों की भूमिका के बारे में ज्यादा जानकारी मुहैया कराते हैं।

डॉ बैनर्जी ने बताया कि उन्होंने साइट-डायरेक्टेड म्युटेजेनेसिस दृष्टिकोण के नाम से पहचानी जाने वाली पद्धति के जरिए एफएसएचआर के कोशिकीय छोरों पर मौजूद अवशेषों की पहचान की जो कि हार्मोन रिसेप्टर इन्टरेक्शन के लिए अति महत्वपूर्ण हैं और इसके लिए म्युटेन्ट्स के उत्पन्न होने की स्थिति और उसकी पहचान का कार्य भी किया गया।

उन्होंने बताया कि पैथोफिजियोलॉजी को समझने के लिए एफएसएचआर म्यूटेशन के दो स्वाभाविक रूप से होने वाले कार्यात्मक लक्षण वर्णन को भी जानने का प्रयास किया गया।

उनके इस कार्य ने एफएसएचआर के कार्य को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार कुछ प्राकृतिक तौर से उत्पन्न होने वाले म्युटेशन्स के कार्यात्मक लक्षणों को पहचानने में मदद की। इस तरह प्रजनन संबंधी पैथोलॉजी को भी समझने में मदद मिली।

डॉ बैनर्जी ने अपने दल के साथ प्यूबर्टी यानी वयः संधि जैसे जैविक मोड़ को समझने के लिए भी एक अध्ययन शुरू किया है। वयः संधि वह शारीरिक प्रक्रिया है, जिसमें एक बाल शरीर वयस्क शरीर में परिवर्तित होकर यौन प्रजनन के कार्य में सक्षम होता है।

न्यूरोपेप्टाइड हार्मोन किस्सपेप्टिन-1 या उसके रिसेप्टर में म्युटेशन्स आने से किसी बालक अथवा बालिका में वयः संधि की अवस्था समय से पूर्व आ जाती है। डॉ बैनर्जी ने बताया कि उनका दल इसी का अध्ययन कर रहा है। उनके दल में वैज्ञानिक, बाल रोग विशेषज्ञ और आनुवंशिकीविद् भी शामिल हैं।