कई सवाल मन में- पंकज चौहान

कई सवाल मन में
सहमे-सहमे से रहते हैं,
हर तरफ की खामोशी
कुछ न कहने को कहती हैं
क्या हजारों सोचते हैं यहीं?
या दफ़न हैं सवाल उनके भी
इस खामोशी का कारण क्या हैं?
कही डर तो नहीं
हर कोई खामोश क्यों हैं?
देखता,जानता तो हैं हर कोई
समझ रहा हैं उनके इशारों को
फिर क्यों एक दिन वो
गलती कर बैठता हैं
क्यों आँखों पर पट्टी बाँध?
करता हैं गलतियाँ बार-बार
समझ नहीं आता
न ही समझने की कोशिश
न जाने ये दौर कब थमेगा
बस इतनी सी उम्मीद हैं
कि इतिहास ने सुधारी है
गलती अपनी कई बार

-पंकज चौहान