डॉ. निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
कुम्हार की चाक पर, मिट्टी का गीत बसा,
हर चक्कर में एक नई कहानी है रचा।
उसकी उंगलियों का जादू, मिट्टी में जान भरे,
दीपक के छोटे से तन में, जीवन का उजास गढ़े।
अंधेरों को हराने का जब आता है वक्त,
दीपक जलता है, जैसे कोई वीर सख्त।
कुम्हार की मेहनत, दीपक की चमक में समाई,
हर घर आंगन में फिर से, रोशनी की धारा आई।
दीपक का छोटा सा स्वरूप, अंधियारे को काटे,
हर बूँद तेल की, उम्मीदों की राह बांटे।
कुम्हार की साधना, दीपक की रोशनी में बसी,
जगमग है दुनिया, अब उसकी मेहनत सजी।
इसलिए न भूले कभी, कुम्हार का वो श्रम,
जिसने दिया हमें ये उजाला, वो है धरती का रत्न।
हर दीपक की लौ में, उसके सपने भी जलें,
उनके घर भी दीपावली की रात रोशन हो चलें।