यह साक्ष्य नहीं संकेत प्रकृति का, समयासर निज अनुबंधन कर ले
हे मानव मत खेल प्रकृति से, इन खेलों का प्रतिबन्धन कर ले
है प्रमाण जब भी अधर्म ने अपना कदम बढ़ाया है,
धर्म कवच बनकर प्रकृति ने अपने अस्त्र चलाया है,
यह महामारी ही प्रकृति अस्त्र है, इसका तू अभिनंदन कर ले
हे मानव मत खेल प्रकृति से, इन खेलों का प्रतिबन्धन कर ले
सच्चाई कितनी भी कटु हो उसको तो सहना ही है,
जीवन पथ पर उठते गिरते मानव को चलना ही है,
साधुवाद जिनके हृदयों में उनका तू आलिंगन कर ले
हे मानव मत खेल प्रकृति से, इन खेलों का प्रतिबंधन कर ले
जीवन कहां शरण लेता जब मौत ने जाल बिछाया है,
हाहाकार पुकार विश्व महामारी से थर्राया है,
माँ शाकंभरी का आवाहन करके उनका तू अभिवादन कर ले
हे मानव मत खेल प्रकृति से, इन खेलों का प्रतिबंधन कर ले
-रामू सिंह