मौत से बड़ी भूख निकली
सड़कों पर पांव पांव चली।
बोझ मौत का कंधों पर ढ़ोया
जठराग्नि उसको भी खींच चली।
बुरा वक्त है, दांव पर लगा भविष्य
वर्तमान का अभी कुछ पता नहीं।
सामूहिक पलायन जारी रहा
कोरोना का भी रहा भय नहीं।
दिल में भय आंखों में पानी
क्या खूब ठनी क्या खूब ठनी।
थक के चूर होती रही मौत
भूख धीमे-धीमे झूम चली।
मौत से बड़ी भूख निकली
सड़कों पर पांव पांव चली।
-सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली