मैं मोहब्बत का शायर हूँ पर मौजूदा हालात
मुझको मोहब्बत लिखने नहीं देता
आग उगल रहा हूँ मैं अपनी कलम से,
और हुकमरान मेरे शब्द दिखने नहीं देता
हिंदू हो या मुसलमान,
दोनों ही बेटे हैं हिन्दोस्तां के,
और कोई भी बेटा अपने बाप की
हस्ती मिटने नहीं देता
तू तोड़ता रहेगा हमको,
तेरी फ़ितरत ही दोगली है,
मैं भी देखता हूँ तू कब तक
धर्मों को आपस में मिलने नहीं देता
सुना है कि सब कुछ बिक जाता है,
इस ज़माने में ‘खुरपाल,
पर शायर का ज़मीर,
उसके जज़्बात बिकने नहीं देता
-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
जालंधर