शिक्षक ऐसे दीपक है जो
तिमिरांकित जग को है जगाते।
बड़े मशाल है बुझ जाते तो
सहिष्णु जुगनू भी दिखाते।
नित्य-नीरव-जड़ित-नत मे भी
अधर अस्मित की पहचान जगाते।
पुष्प कांटो मे ही खिलते है
दीप तिमिर मे ही जलते है।
आज नही युगों-योगों से
शिक्षक से ही ज्ञानदीप जलते है।
विश्वास नही आता तो
साक्षी है यह इतिहास अमर।
दुनिया के वीराने पर
जब भी हमने खाई ठोकर
शिक्षक के शिक्षा से ही उठकर
हमने कसी है अपनी कमर।
अगर वारि सारी लेखन वाणी
पर खत्म नही होगी इनकी कहानी।
शब्द नहीं मिलता मुझको अब
कैसे बताऊं ये क्या है कब।
-पंकज कुमार