जग हैं घनघोर धूप और,
शीतल छाया है माँ
हमारे हरेक सुख दुख का,
अजीज काया है माँ
आज भी नन्हा मुन्ना सा,
तेरा वहीं बच्चा हूँ माँ
धूल से खेलकर आया हूं,
तेरा ही बच्चा हूँ माँ
सोचा हूं फिर से एक बार,
घुटनों से चला दे माँ
बनना है नटखट एक बार,
मुझको नहला दे माँ
फिर से चलना भूल गया,
ऊंगली पकड़ ले माँ
आंखों से ओझल न हो जाऊं,
बाहों में जकड़ ले माँ
आती नहीं है नींद मुझे,
लोरिया सुना दे माँ
कान पकड़कर फिर कभी,
गलतियां गिना दे माँ
भगवान तो कभी देखा नहीं,
पर ईश्वर का स्वरूप है माँ,
मां अनमोल है धरा पर,
और ममता स्वरूप है माँ
ग़रीबी में भी रिश्तों को,
क्या खूब निभाती हैं माँ,
बच्चों को खूब हँसा कर,
दर्द को छुपाती हैं माँ
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़