सुजाता प्रसाद
स्वतंत्रत रचनाकार,
शिक्षिका सनराइज एकेडमी,
नई दिल्ली, भारत
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उमंग भरा हर्षित हर मन
रंग भरी पिचकारी खुशरंग
बासंती हो गई हर दिशा
उड़ रहे अबीर गुलाल
बिखरे हैं रंग, रंग बिरंगे
हवा गा रही फगुआ फाग।
प्रेम रंग से रंग जाता है फागुन
प्रीत कुसुम से बसंत बहार
कोयल गाए, आया मधुमास
खोल रही अंतर्मन का द्वार
मल रही पीली सरसों पीत गुलाल
रंग गई धरा, गा रही राग अनुराग।
फूल पलाश के दहक रहे हैं
खिल गए टेसू सुर्ख़ लाल लाल
पीत वर्ण कृष्ण चूड़ शोभ रहा
गाछ गुलमोहर है झूम रहा
स्वागत में झर रहे अमलतास
छा गया फागुन का उल्लास।