आज वक्त के साथ, मेरी हुई तकरार,
अच्छे वक़्त का, करवाता इंतज़ार।
ठहरता नहीं कुछ पल मेरे पास,
कि रेत-सा फिसल जाता हर बार।।
बुरे वक़्त में धीमी रफ्तार,
काटे नहीं कटती काली रात।
जख्म दे जाती है हर बार,
चुभती जीवन भर बनकर बुरी याद।।
खुशी के क्षण केवल कुछ पल के,
बुरे वक्त ना जल्द गुजरते।
क्यों लेते तुम हर वक़्त इंतिहान?
मिलता क्या तुम्हें परिणाम?
क्यों करती तू मुझसे शिकायत?
ना करता मैं कभी नाजायज।
थोड़ा करो वक़्त का इंतजार,
हर सवाल का वक़्त ही जवाब।।
देता सबको मैं वक़्त सामान,
नहीं करता कभी पक्षपात।
भर जाते जख्म वक़्त गुजरने के साथ,
बच जाती है केवल कुछ याद।।
सिखाता मैं जीवन का पाठ,
ना करता कभी किसी का इंतजार।
चलता रहता मैं निरंतर,
ना किसी में करता कोई अंतर।।
जो समझ जाते हैं मेरी कीमत,
संवार लेते हैं अपना जीवन।
जो ना कर पाते मेरी पहचान,
लगाते रहते हैं मुझ पर इल्ज़ाम।।
स्वाति सौरभ
गणित शिक्षिका,
भोजपुर, बिहार