मैं अंतर्मुखी नारी हूँ
कितनी भी बाधाएं हों
विपदा के हों बादल घनघोर
मुझको
फिर भी डिगा न पाए,
मन प्रमुदित हर पल मुस्काए,
विपदा के बादल बरसे
फिर थम जाए
मर्यादा राम सी
माता दुर्गा का बल धारे
ना विचलित होता कोई पग
मैं कलयुग कि नारी हूँ
कभी नहीं मैं हारी हूँ
नित नये नये किरदारों का
मैं धर्म निभाती,
प्रति पल सब का कुशल मनाती,
दुश्मन की टोली पर
प्रतिपल भारी हूँ,
मैं धधक रही चिंगारी हूँ,
मैं कलयुग की नारी हूँ
वक़्त पड़े तो शक्ति बन
मैं करती शेर सवारी हूँ
हे भारत की बहू बेटियों,
उठो! विपदा पर वार करो,
आँसू पोछो!खड्ग उठाओ
रोओ मत, चीत्कार करो,
तुम ही दुर्गा,काली हो
खुद को पहचानो
अपने पथ का विस्तार करो,
समय के पहिये के मृदु पल में
अपने कर्मों का हार बनो,
सब शत्रु का दलन करो
अपना स्वरूप विस्तार करो
सब अरि का कर सार तार
अपने पथ का विस्तार करो
तुम उन्मुक्त गगन में विचरो
तुम उन्मुक्त धरा पर विहरो
हे दया स्नेह की मूर्त्ति प्रबल
विपदाओं का संधान करो!
विपदाओं का संधान करो!
सिंधु मिश्र
राँची