फिर आऊंगी
वो बनकर
जो तुम्हे अच्छा लगे
तुम्हारे पास रहे
तुम्हारी टीस, तुम्हारा दर्द
तुम्हारा खालीपन, समेटकर
जा रही हूँ जमी के पार
हर इक जहन से परे
हर इक चुभन से परे
इसी आसरे
की इस बार
ना मेरी जात अलग होगी
ना मेरा रंग
ना तहजीब, न जुबान
ना हैसियत, ना शान
ना रोजगार की फिक्र
ना होगा तकदीर की
नाकामियों का जिक्र
इस बार मैं तुम्हारे
हालात में आऊंगी
तकलीफ की तहो से
निकाल लाऊंगी
पूरी जिंदगी
तुम मिलना
एक नए नाम
नए पहचान से…
सोमी पाण्डेय