नींव में रखे गए
हर उस कठोर और मजबूत पत्थर को
सहस्त्र कोटि कोटि नमन
जिसने अपना पूरा जीवन
बलिदान कर दिया
सिर्फ इसलिए ताकि
घर की नींव मजबूत बनी रहे
बची रहे तमाम तूफानों के बीच
उसके भूमिगत हो जाने को
शिलान्यास नहीं कहते
कोई उत्सव उनके लिए नहीं होता
क्योंकि
कुछ शिलाएँ
हर क्षण
विलाप भी करती हैं
बस उनका क्रंदन हमें
सुनाई नहीं देता
क्योंकि इस बेहया पितृसत्तात्मक समाज में
हमारे कान बंद हो चुके है
हमेशा के लिए
स्नेहा किरण
(युवा कवयित्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता)