हाँ स्वीकार है मुझे
मैं शून्य हूँ
पूरा ब्रह्माण्ड मुझमें समाया
विधाता की मैं जननी हूँ
दुख भी मैं, सुख भी मैं
तुच्छ हूँ
पर महत्वपूर्ण हूँ
मैं शून्य हूँ
आगे लग जाऊं
तो मान बढ़ा दूं
गुणा कर दो
तो अदृश्य कर दूं
अमूल्य हूँ
पर बहुमूल्य हूँ
मैं शून्य हूँ
गणना में इकाई, दहाई, सैकड़ा हूँ
मेरे बिना असम्भव है
कोई अनुमान लगाना
सूरज से चांद तक की दूरी
का गुमान हूँ
तिरस्कृत हूँ
पर गम्भीर हूँ
हां स्वीकार है मुझे
मैं शून्य हूँ
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश