प्रेम-प्रीत की भाषा: वीरेंद्र प्रधान

रोज कमा कर खा लेंगे हम
इसमें ही सुख पा लेंगे हम
मेहनत की रोटी नित खाकर
नींद सहज ही बुला लेंगे हम


बहुत भरोसा है हाथों पर, रेखाओं की क्या लाचारी,
हमने लेख लिखे श्रम से, जो बदलेंगे तक़दीर हमारी


दौलत जिसको कहती दुनिया
उसको पाने की न आस है
सोना-चांदी, हीरा मोती-
को पाने का नहीं प्रयास है


रोज खोजते उस दौलत को, हर ले भूख प्यास जो सारी,
बहुत दिया धरती ने हमको, अब है लौटाने की बारी


सच है दूर बहुत है चंदा
दूर बहुत नक्षत्र हैं सारे
किसी दूर वासी के दर पर
हमने कभी न हाथ पसारे


हाथ बढ़ाया हमने उसको, जिसे चाहिये मदद हमारी,
मिटें दूरियाँ बढ़े करीबी, कोशिश है बस यही हमारी


नफ़रत की बोली को छोड़ें
बोलें प्रेम-प्रीत की भाषा
पढ़ा-लिखा शहरी होने की
पूरी हो सबकी अभिलाषा


मिटे विषमता भेदभाव सब, सुख पावें सारे नर-नारी,
हर कदम के साथ करें हम, नयी घोषणा की तैयारी


चकाचौंध में हम न उलझें
खोजें राह सदा जगमग में
शूलों को भी अपनायें हम
फूल मिलेंगे हमको मग में


मावस से न घबराएं हम, जो पसरी है कारी-कारी,
निश्चित है कि हम पायेंगे, बहुत शीघ्र ही पूनम प्यारी

वीरेंद्र प्रधान
शिव नगर, रजा खेडी,
सागर, मध्य प्रदेश