समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश
घर में जाओ तो छोड़ दो बाहर
अपने दुख-दर्द, अपनी चिंता फिकर
उसको किस बात का भला हो डर
जिसका पक्का यकीन ईश्वर पर
उसकी मर्जी है तो रवां होगी,
नाव तूफान में भी लहरों पर
वो भी निकले संभालने दुनिया,
जिनसे खुद का नहीं संभलता घर
मान भी लीजै बात है सच्ची,
है नहीं कुछ भी वक्त से बढ़कर
खौफ के साए से निकल आए,
अपनी रख ली है जां हथेली पर
सच बयानी का ये असर है ‘नितान्त’
लोग नाराज़ ही हुए अक्सर