अगस्त क्रांति और जबलपुर के कवि इन्द्र बहादुर खरे का गहरा संबंध है। पहले समझ लें अगस्त क्रांति क्या है? भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए तमाम छोटे-बड़े आंदोलन किए गए। अंग्रेजी सत्ता को भारत की जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी उसे ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से जाना गया है। इस लड़ाई में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। यही वजह है कि इसे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं। इस आंदोलन की शुरुआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं। इस आंदोलन की शुरुआत मुंबई के एक पार्क से हुई थी जिसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया।
पूरे भारत में जहां भी अगस्त क्रांति का आयोजन 9 अगस्त को होता है, तब जबलपुर के कवि इन्द्र बहादुर खरे का गीत-
नौ अगस्त हो गया अस्त, पर अस्त न हो पायी वह लाली,
जिसने अपनी स्वर्णाभा से, चमका दी युग रजनी काली ।।
जिसका उजियाला भारत में, अमर जागरण लेकर आया,
जिसने नगर-डगर घर-घर में जनता को ललकार जगाया।।
उत्साह व उमंगता के साथ गाया जाता है। मुंबई के गवालिया टैंक मैदान (अगस्त क्रांति मैदान) में इन्द्र बहादुर खरे लिखा देशभक्ति गीत प्रत्येक वर्ष गूंजता है। स्वतंत्रता की इस अलख ने एक कवि हृदय को भी झकझोरा और कलम से जन्मा एक ऐसा गीत, जिसे आज भी उसी अगस्त क्रांति मैदान पर शहीदों की स्मृति में गुनगुनाया जाता है। कवि इन्द्र बहादुर खरे ने भी इसी दिन 9 अगस्त को अपनी भावनाओं को शब्दों में ढाला था। पिछले कई वर्षों से मुंबई में सोमनाथ पर्व की गायन मंडली उनका लिखा गीत ‘नौ अगस्त हो गया अस्त… पर अस्त न हो पाईं वह लाली…’ कर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करती आ रही है।
गाडरवारा में जन्मे प्रो. इन्द्र बहादुर खरे ने जबलपुर के हितकारिणी सिटी कॉलेज से बीए किया। नागपुर यूनिवर्सिटी से एमए करने के पश्चात उन्होंने मॉडल स्कूल में सन् 1946 से 1947 तक अध्यापन किया। महाराष्ट्र हाई स्कूल में उन्होंने सन् 1947 से 1948 तक अध्यापन किया। हितकारिणी महाविद्यालय में वे सन् 1949-52 तक प्राध्यापक रहे। इसके पश्चात गन गैरिज फैक्टरी में नौकरी की। आज उनकी लिखी कविताएं स्कूलों, कॉलेज व विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही है। भोर के गीत, सुरबाला, विजन के फूल, सिन्दूरी किरण, रजनी के पल उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं, वहीं सपनों की नगरी, जीवन पथ के राही जैसे कहानी संग्रह भी लोकप्रिय हुए हैं। इन्द्र बहादुर खरे का सिर्फ 31 वर्ष की अल्पायु में 1953 में निधन हो गया। 81 वर्षों बाद जब 9 अगस्त आता है तब इन्द्र बहादुर खरे याद आते हैं।