Thursday, September 19, 2024
Homeसाहित्यचलो यहाँ से दूर चले हम- रकमिश सुल्तानपुरी

चलो यहाँ से दूर चले हम- रकमिश सुल्तानपुरी

चलो यहाँ से दूर चले हम ढूंढे स्वर्ग सुरक्षित
यह तो मानव लोक नहीं है, यह है नरक अपरिचित

पाल रहें है सम्बन्धों में कटुता की प्रतिछाया
लोग समझते निज बेटी को क्योंकर यहाँ पराया
सारे रिश्ते टिके यहाँ पर निजी स्वार्थ के नाते
अवसर पाकर लोग गिरगिटी रंग बदलते जाते
जाति-पाति के तुच्छ भाव से लोग यहाँ है कुंठित
यह तो मानव लोक नहीं है, यह है नरक अपरिचित

नेता, मंत्री, अफ़सर, बाबू चपरासी तक भूखे
खाते जनता का हक़ फिर भी पेट भरा न, रुखे
वहशीपन नित फैल हृदय में अंधकार भर देता
सच का सूरज अस्त हो रहा झूठा बना विजेता
छोड़ निरीहों को बढ़ जाते धन-मद से आवेशित
यह तो मानव लोक नहीं है, यह है नरक अपरिचित

भीख माँगती है सज्जनता दुर्जनता के आगे
दुर्व्यसनाएँ प्रौढ़ हो गईं मानवता को त्यागे
अंधे, बहरे, लूले, लंगड़ों सा रहता जनमानस
अन्यायों को सहकर जीते हैं जीवन को बरबस
क्षण भर मात्र न रोको मुझको यहाँ पवन तक दूषित
यह तो मानव लोक नहीं है यह है नरक अपरिचित

-रकमिश सुल्तानपुरी
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश

संबंधित समाचार

ताजा खबर