निश्छल मन की प्रीति साँवरे- स्नेहलता नीर

छूकर मेरा तन-मन मोहन, मुझे मलय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

अनजानी सी डोर अनन्ता, बाँधे है तुमसे
यही तुम्हारा ठौर-ठिकाना कहती है मुझसे
निश्छल मन की प्रीति साँवरे, तुम अक्षय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

स्वर मुरली के मधुर चतुर्भुज, अति मन को भाते
बजने लगती है पायलिया, पाँव थिरक जाते
मेरी बातों में मीठे स्वर, कृष्ण विलय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

आ जाओ देवेश, मनोहर, तुम्हें बुलाती हूँ
करती हूँ मनुहार तुम्हारे, स्वप्न सजाती हूँ
प्रणय निवेदन के भावों को, देवालय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

अंतहीन मन के उपवन में, पतझर छाया है
दुख की बदली ने आँखों से,जल बरसाया है
मन की बगिया को माधव मधु, मास निलय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

राग-द्वेष,छल-छंदों की प्रभु, फसलें हरी-भरी
सद्भावों की कोमल कलियाँ, रहतीं डरी-डरी

गंगा की पावन धारा-सा, विमल हृदय कर दो
दो सद्बुद्धि विवेक दयानिधि, भाग्य उदय कर दो

-स्नेहलता नीर