उज्जैन,(हि.स.)। मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में गुरुवार तड़के भस्म आरती के दौरान आंवला नवमी के अवसर पर भगवान महाकाल का विशेष श्रृंगार किया गया। भगवान को आंवले की माला, रजत चंद्र, भांग, और चंदन अर्पित किया गया।
ज्योतिषाचार्य पं. हरिहर पंड्या के अनुसार आंवला नवमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु और शिव का वास होता है।
देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को विष्णु-शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की थी, जिसके बाद से यह पर्व शुरू हुआ। इस दिन पूजा, व्रत और दान करने से अक्षय पुण्य (अविनाशी पुण्य), आरोग्य, सौभाग्य, वैवाहिक सुख, संतान की उन्नति और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, आंवला ब्रह्माजी के आंसुओं से उत्पन्न फल है और समुद्र मंथन के समय निकले अमृत की बूंदें इसमें गिरने से यह फल दैवीय माना गया है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था, जिसे भी आंवला नवमी के महत्व में जोड़ा जाता है। व्रत और पूजा करने से घर में सुख-शांति, प्रेम और समृद्धि आती है और जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है।
इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना और गरीबों को आंवले या उससे बने वस्तु दान करना शुभ माना जाता है। आयुर्वेद में भी आंवले को स्वास्थ्यवर्धक अमृतफल माना गया है। आंवला नवमी का दिन सतयुग की शुरुआत की तिथि भी माना जाता है, जिससे इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है।












