करवा चौथ में चाँद को छलनी से क्यों देखते हैं: सोनल मंजू श्री ओमर

सोनल मंजू श्री ओमर
राजकोट, गुजरात

हिन्दू धर्म में अनेक त्यौहार हैं, जिन्हें भक्त, पूरे श्रद्धाभाव के साथ मनाते हैं। हर एक त्यौहार को मनाने एवं पूजने की विधि अलग होती है, जिसका नियमानुसार पालनकर, भक्त उस त्यौहार को संपन्न करते हैं। इन्हीं में से एक त्यौहार है, करवा चौथ। हिन्दू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं, अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। 

यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे अहम व्रत माना जाता है। करवा चौथ के दिन, महिलाएं बड़े ही श्रद्धा भाव से शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इस दिन व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय जी और गणेश जी के साथ-साथ, चन्द्रमा की भी पूजा कर, चन्द्रमा को महिलाएं, छलनी में से देखती हैं और फिर उसी छलनी में से देखा जाता है पति का चेहरा। लेकिन, अक्सर यह सवाल मन में उठता रहता है कि, आखिर इस परपंरा के पीछे कारण क्या है?

चन्द्रमा को छलनी से देखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। लेकिन इस प्रथा का महत्व क्या है चलिए बताते हैं… कहते है भविष्य पुराण में लिखा है कि चौथ का चाँद देखना वर्जित (मना) होता है। चौथ का चाँद देखने से मिथ्या आरोप लग सकता है या फिर कहें कि कोई झूठा आरोप लग सकता है। वहीं करवा चौथ भी चौथ की ही तिथि है। यही कारण है कि चाँद को इस दिन खाली देखने की बजाए किसी वस्तु का इस्तेमाल करके (छलनी की ओट से) देखा जाता है।

एक और मान्यता के अनुसार छल से बचने के लिए भी छलनी का इस्तेमाल करते हैं। कहते हैं, प्राचीन समय में वीरवती नाम की विवाहित लड़की थी, जिसने शादी के बाद, पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था। उस वक्त, वह अपने मायके में थी और उसके भाईयों से उसका भूखा रहना देखा नहीं गया। इसीलिए उन भाइयों में से सबसे छोटे भाई ने पेड़ की डालियों में एक छलनी के पीछे जलता हुआ दीपक रखा और अपनी बहन वीरवती को भ्रम से चन्द्रमा दिखाकर, उसका व्रत खुलवा दिया। जिससे करवा माता रुष्ट हो गईं और अगले ही पल वीरवती के पति की मृत्यु का समाचार मिला।

अपनी इस भयंकर भूल का अहसास जब वीरवती को हुआ तो उसने अगले साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर फिर से करवा माता का यह व्रत, विधि-विधान से किया और हर छल से बचने के लिए, इस बार हाथ में छलनी लेकर चंद्र देव के दर्शन किए। इससे प्रसन्न होकर माता ने उसके व्रत को स्वीकार किया और उसके पति को जीवित कर दिया। तब से लेकर अब तक, हमेशा छलनी में से ही चन्द्रमा को देखने की परंपरा है।

ये भी माना जाता है कि जब महिलाएं चाँद को देखती हैं और फिर पति के चेहरे को छलनी में दीपक रखकर देखती हैं, तो उससे निकलने वाला प्रकाश सभी बुरी नजरों को दूर करता है। साथ ही जब दीपक की पवित्र रोशनी साथी के चेहरे पर पड़ती है तो पति-पत्नी के रिश्ते में सुधार आता है।

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन नई छलनी में से ही चाँद देखना चाहिए। जिससे किसी तरह का छल ना हो और करवा माता, व्रती महिला के, विधि-विधान से किए गए व्रत को स्वीकार करें।

करवा चौथ, मुख्य पर्वों में से एक है, जिसका इंतज़ार हर वर्ष, महिलाएं बड़ी बेसब्री से करती हैं और अपने पति की लम्बी आयु के लिए, पूरे रीति-रिवाज़ों के साथ, करवा चौथ के व्रत को संपन्न करती हैं।