पा रहे हैं योजनाओं का सही अधिकार कितने
आज बदहाली से लड़ने को यहाँ तैयार कितने
जो ढ़िढोरा पीटते थे देशहित का फ़क्र से वो,
मुँह छिपाते दिख रहे हैं आजकल लाचार कितने
पोल उन सबकी खुलेगी देश को जिसने भी लूटा,
हैं, पता बेशक़ चलेगा देश में गद्दार कितने
आपदाओं के कहर में भूख से जो लड़ रहे हैं,
आ रहे उनको बचाने गिरगिटी क़िरदार कितने
ऐ सुनो गुमशक्ल चेहरों! शर्म से जाओ कहीं मर,
सुर्खियां तेरी गिनाते आज़कल अख़बार कितने
देश के उन मांझियों को आज करता हूँ नमन,
सच्चे दिल से खे रहे है देश की पतवार कितने
हो गया होगा यक़ीनन आपको मालूम रकमिश,
मानते है नागरिक अब देश को परिवार कितने
-रकमिश सुल्तानपुरी
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश