कामवाली बाई- सुरेश प्रसाद श्रीवास्तव

देखा आज सुबह
नीचे आंगन में बुदबुदाते,
शायद सुनी होगी
कड़वी बातों भरी डपट
न आने या देर से आने पर।

धरा धराया रह जाता
किया कराया बीते कई वर्षों का
मानो चंद रुपयों में खरीद ली
उसकी बीमारी, तकलीफ, पीड़ा

सहना भी, अब उसकी लाचारी
रुढ़ीवादी दासता की कुंठा से
उबर पाना बड़ा मुश्किल
सिवाय कोसने की अपनी किस्मत

सिलवट पर मसाला पीसते, मसलते
कुचल डालती लोढ़े से अपनी पीड़ा
मसाले की तीखी महक के साथ
जो उतर आती उसकी आंखों में
सुबकते-सुबकते
छलक आती आंसू बनकर

रोज़मर्रा की तानाकशी से उबकर
चाहती पीस डाले,अपनी बदनसीबी
सिलवट पर मसाले के साथ
जो शायद बदल दे
जायका उसकी किस्मत का

सिलवट-लोढ़े के साथ जुड़ी
उसकी हर दिन की साझेदारी
उनकी धीमी से कर्कश
टकराने की खटखटाहट,
बता देती हालात
उसके मिजाज के

आज चिड़चिड़ा कर चाहा
उबर जाना रोज की किच-किच से
सिलवट- लोढ़ा उठा
फोड़ ले अपना माथा
और पटक इन्हें जमीन पर
कर दे इनके टुकड़े ,
ताकि मिल जाए
दोनों को एक साथ छुटकारा

-सुरेश प्रसाद श्रीवास्तव

परिचय-
सुरेश प्रसाद श्रीवास्तव
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्राणी-शास्त्र विभाग (अवकाश प्राप्त)
वीर कुंवर सिंह विवि,आरा
संपर्क: राजेन्द्र नगर, मोती सिनेमा के सामने,आरा
मो. 8987104304