तुम मुग्ध हो किस भाव में
यह रूप का जादू
किसको दिखाया पास आकर
आज सूरज झांकता
जिस पहर में दोपहर को
तुम मुस्कुराती राह में
बारिश में
संध्या का मन हुआ चंचल
भीगता जो मन
कहाँ
यह अकेला तन
कितनी दूर हो तुम
आज घर से
बिलकुल अकेली
याद आती फिर वही होली
फूलों के सुवास से भरा मन
किसने पास बुलाया तुमको
-राजीव कुमार झा