जाने कैसा अज़ाब आया है
हर जगह खौफ़ ही का साया है
बीच दरिया के डाल दी कश्ती
हमने यूँ ख़ुद को आज़माया है
चाँद, तारे सुकूं नहीं देते
क्या सितम मौसमों ने ढाया है
सूनी गलियाँ, ख़मोश हैं सड़कें
डर ये कैसा फ़िज़ा में छाया है
कोई सूरत नज़र नहीं आती
इस क़दर वक्त बौखलाया है
-अनिता सिंह
मुजफ्फरपुर, बिहार