नदी- रक्षित राज

हम गलत व्याख्या करते हैं कि
हर नदी समन्दर में मिलना चाहती है
यही उसकी नियति है
यही नीतिसंगत है
ऐसा कहने वालों कि नीयत ठीक नहीं

हमारा अपनी विफलताओं को
मूल्य के परिधान में
छुपाए रखना
इस युग का सबसे बड़ा अपराध है

हमें अपनी नाकामयाबी स्वीकारनी होगी
हमें पंक्ति में आगे आकर कहना होगा कि
नदी समन्दर में इसलिए मिलती है कि
हम उसके एक-एक बूँद का
सदुपयोग नहीं कर पाये हैं
उसके हरेक कतरे के साथ
न्याय नहीं कर पाए
समुन्दर बनना हमारी निष्क्रियता का
ज्वलंत प्रमाण है

हम लाख जलधि हो जायें
अगर इस धरा पर मरुस्थल है
तो हमारा अस्तित्व निरर्थक है

जब भी नदी बनें
अपने जल को समाप्त कर दें
खेत को सींचने में
किसी के प्यास बुझाने में
भोजन बनने में या बनाने में
सम्मिलित होकर के

ख़ुद को समाप्त कर देना
खुद को बचाये रखने के
जद्दोजहद के अपेक्षाकृत
हमेशा अनुकरणीय एवं महान है

-रक्षित राज
छात्र,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय