नदी हूँ मैं- गायत्री

नदी हूँ मैं
जो लौटती नहीं
कभी पीछे

हवा हूँ मैं
जो
बँधती नहीं
कभी किसी से

झुमाती-झकझोरती
सहलाती
यादों वाली
बारिश हूँ
मैं

सुबह-सुबह की
अलसाई हुई
धूप हूँ
मैं

फसलों पर बिखरी
सुनहरी आभा वाली
दमकती साँझ हूँ
मैं

बेसबब उड़ते-फिरते
पीले पत्तों की
आवारगी हूँ
मैं

स्त्री हूँ
मैं
बाँधों नहीं
मुझे
पंखों को खोल
उड़ना चाहती हूँ
मैं

-गायत्री