जामुन से तुम रसीले, कड़वी दवा से हम
अच्छे समय से आप और भोगी सजा से हम
कोई एक हो ठिकाना तो तुमको बता देते,
आलम में भटकते हैं पागल हवा से हम
उस दौरे गुजिस्ता की लज्ज़त बड़ी निराली
तेरा हाल पूछते थे, बाद-ए-सबा से हम
इस जिंदगी की यारो, सीरत बड़ी अजब है
आजिज ही आ चुके हैं, इसकी अदा से हम
हासिल हैं सिर्फ आंसू, गफलत औ पशेमानी
क्या आँख मिला पायें अपनी वफ़ा से हम
तुमको पता तुम्हारा कैसे व्यथित बताये
बरसों रहे खुद अपने लिए, लापता से हम
– सुधीर पाण्डेय व्यथित