कैसे सोच लेते है लोग कि माँ बोझ है?
चलो वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं
माँ से ही जन्म लेकर,
माँ को ही आंखें दिखाते हैं
माँ वने ही तो चलना सिखाया,
पाल-पोसकर आज इस लायक बनाया
तुम्हारी ज़रूरतों की खातिर
गला अपने सपनों का दबाया
खुद भूखी रहकर, तुम्हें को खिलाती है
तुम्हें तकलीफ़ हो तो, खुद दर्द से कराहती है
सलामत रहे परिवार यही भगवान से चाहती है
माँ का आदर करना तो दूर
लोग माँ की ममता भी भूल गए
माँ ही थी जो दुनिया में लाई थी
लोग उसे ही अपनी दुनिया से दूर करने चल दिए
तरस आता है उन लोगों की किस्मत पर
जो भगवान जैसी मां को न समझ पाए
अपने ऐशों-आराम की खातिर
माँ को वृद्धाश्रम क दरवाज़े तक ले आए
सोचते हैं की ऐसा करके सुखी रहेंगे ,
पर इन मूर्खो को कौन समझाए?
ऐसा करके अपने लिए नरक का
दरवाज़ा ज़रूर खोल आए
हर माँ का सम्मान करो
हाँ, बस ज़रा अपनी माँ से
थोड़ा ज़्यादा प्यार करो
-ईशिका गोयल
चंडीगढ़