जब भी देखी, मैंने उसके कटे-फटे पैरों में दरारें देखी हैं,
माँ कितनी भी गुस्से क्यों ना हो,
मैंने उसकी जुबां पर दुआओं की बौछारें देखी हैं,
ऐ खुदा तेरी कायनात में एक सूरत बेचारी देखी है,
उसका बच्चा खिलौना माँग रहा था,
और वो दिला ना सकी,
मैंने उस माँ के चेहरे पर लाचारी देखी है,
वो अपनी सभी ख़्वाहिशों का गला घोट देती है,
पर मैंने हर एक माँ,
अपने बच्चों की ख़्वाहिशों के आगे हारी देखी है,
उसके कर्ज़ का एक कतरा भी,
तू अदा ना कर पाएगा ‘खुरपाल’,
हमेशा अपनी कामयाबी देखता है,
पर क्या तूने कभी माँ की कुर्बानी देखी है
-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल,
पठानकोट