तुम संगीत हो
यौवन की झंकार
मौसम ने पहना
धूप का हार
तुमने देखा इसी राह में
कोई गीत सुनायी देता
संध्या का स्वर
कहाँ सिमटता
बेहद सुंदर यादें
वे दिन बने वसंत बहार
देखो हरियाली में
आयी हो
धरती ने दोनों हाथों से
आज उलीचा
कितने सुंदर पीले फूल
अब कहाँ उदास हो
अब सबका तन खूब मनोरम
-राजीव कुमार झा