देख दिल पर ज़ख्म गहरा हसरतों ने ख़त लिखा
आज फिर मुझको मेरी तन्हाइयों ने ख़त लिखा
उम्र गुज़री तड़पती यूँ करवटों में रात भर
दर्द से हो रूबरू अंगड़ाइयों ने ख़त लिखा
दिन तो जैसे-तैसे गुजरा शाम की ख़्वाहिश लिए
रात भर आँखों से बहकर आंसुओं ने ख़त लिखा
आजकल यादों में चलती हैं तेरी किरदारियाँ
देखकर तस्वीर तेरी हरक़तों ने ख़त लिखा
दफ़्न है सीने में कितने खार, खंज़र और ख़ुशबू
जिंदगी को लूटकर बर्बादियों ने ख़त लिखा
इश्क़ की इस आग़ में तो सिर्फ़ बचता है धुआँ
ज़ख्म खाई रूह की परछाइयों ने ख़त लिखा
है जुबां पर नाम रकमिश, हो रहे क्यों लफ़्ज़ चुप
दिल के कागज़ पे तेरी ख़ामोशियों ने ख़त लिखा
-रकमिश सुल्तानपुरी