ग़म का दरिया हूँ कोई साहिल नहीं हूँ मैं
ऐ दोस्त! तेरे ख़्वाब की मंज़िल नहीं हूँ मैं
दर्द न ले दोस्त मुझसे रख ज़रा दूरी
खण्डहर हूँ ख़ुशनुमा महफ़िल नहीं हूँ मैं
दोस्ती में प्यार का रख्खा भरम जब तो
आप समझो आपकी मुश्किल नहीं हूँ मैं
सच कहूँ तो आप मेरे दोस्त हो अच्छे
वक़्त का पाबन्द हूँ क़ातिल नहीं हूँ मैं
हो सके तो कर ले तू जज़्बात पर काबू
प्यार की तरफ़ा ज़रा माहिल नहीं हूँ मैं
इश्क़ में टूटा मग़र ख़ैरात न लूँगा
प्यार के ग़म से अभी बोझिल नहीं हूँ मैं
सिर्फ़ मिलना हो सकेगा ख़्वाब में रकमिश
सुन हक़ीक़त में कभी हासिल नहीं हूँ मैं
-रकमिश सुल्तानपुरी