रह-रह के चुभ रही,
मेरे सीने में एक फ़ांस
कैसे सुलझेगी उलझन,
क्या है इनका सारांश
सारी युक्ति लगा देखी,
नहीं मिला लाभांश
जैसे रास्ता भटक गया,
मेरा दूर बहुत आवास
बिगड़ी बनाने चला था,
कहीं बदल गया प्रवास
सज्जन का सम्मान अधर,
होता हास-परिहास
रुई का भ्रम बना रहा,
वो खा बैठे कपास
प्रलोभन से दबा हुआ,
मैं बना हुआ हूँ दास
विश्वास रख कर्म कर ‘उड़ता’
तेरी पूरी होगी अरदास
-सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा
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