न लौट आया तू कभी,
न इन्तजार कम हुआ
न तेरा प्यार कम रहा,
न मेरा प्यार कम हुआ
ये भावों की थीं शोखियाँ,
जो समर्पित हो गयीं
जी चाहा तुमसे दूर थीं,
जी चाहा तेरी हो गयीं
तू था नहीं, पर ये हवा
आवाज़ तेरी बन गयीं
कभी ओस की बून्द सी,
कभी साज तेरी बन गयीं
मुस्कान तेरी फूलों में,
हर पंखुडी में खिल उठी
मानो किरण सुवास से
चुपके-चुपके मिल उठी
न स्वर उठा, न वेदना,
पर इन्तजार था तेरा
हर साँस में तू बस गया,
बस इतना प्यार था मेरा
तू जायेगा, तो जा सही,
जाकर भी जा सकेगा क्या?
तू दूर मुझसे है नहीं,
तू मूझको पा सकेगा क्या
पाने और खोने का
कभी भाव मेरा था नही
तुझे साधिकार रोक लूँ,
स्वभाव मेरा था नहीं
चला गया तो ठीक है,
तू रूक सके तो रोक लूँ
सहला दूँ तेरे जख्म भी,
अपने हृदय का दर्द दूँ
जो गया तो जा मगर,
तेरे दर्द में मैं आऊंगी
गिरा कहीं कभी जो तू,
पहले तुझे उठाऊँगी
मैं क्या करूँ उस नेह का,
जो ज्वार बन कर आ गया
तेरा स्नेह बन हृदय में जो
दर्द सा समा गये
मैं क्या करूँ उस भाव का,
मिटाये जो मिटता नही
क्या करूँ उस याद का
पल भर भी जो हटता नहीं
अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव