अनकहे भावों की,
एक चित्र लेखा तू ही तो है
आत्मा को प्रियतर-
वैसी सुलेखा तू ही तो है
देखती हुई रात- दिन,
फिर भी न देखा तू ही तो है
खींचती हुई आत्मपट पर-
मौन सुरेखा तू ही तो है
तू ही तो अव्यक्त में-
अभिव्यक्ति की कोटिक कहानी
तू ही तो अदृश्य में है-
मूर्त सी मौन प्राणी
तू ही तो अवचेतनों में-
खींचती हुई मौन वाणी
इस मृदुल-मधु होंठ पर-
तुझसे ही मुस्कान गाढ़ी
आज फिर तू आ गई-
वह साथ सुन्दर सा निभाने?
जिन्दगी के जीत और –
हार का संग गीत गाने?
मौन आराधना का-
ज्योति कण मुझ पर बिछाने?
व्यथा के इस खेल में भी-
गुनगुनाती हिस्सा पाने?
बदल जाए सारी दुनिया,
तू नही बदलेगी शायद!
फिर से अभिनय कर रहा है,
लो तुम्हारा महा नायक!
फिर नये फिल्म की-
तू गायिका और वो है गायक
देखो कितनी चलती है-
पगली! फिल्म ये नालायक!
अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव