मेरे लिए सरल नहीं था
प्रेम प्रपंच से स्वयं
को बाहर निकालना
छलावे को निमंत्रण देकर
प्रेम को स्वीकार किया
ह्रदय, मस्तिष्क के साथ
मेरा अनुभव भी चला गया
प्रेमिल के प्रेम में मेरा
शेष कुछ रहा कहां
भावना के बहाव में अनायास बहती चली गई,
धारणा-अवधारणा के बीच गोते लगा रही
जाने अनजाने में या
सब कुछ जान कर
दोष उसने मेरे सर मढ़ दिया।
मेरे मौलिकता को
जानकर भी
उसने हमें अस्वीकृत किया
मैं समझ ना सकी
प्रेम के दूसरे स्वरूप को
जिसे उसने व्यापार समझा
उसने पड़ताल की थी
मेरे स्वभाव और प्रेम की
वह असफल रहा
स्वयं के व्यक्तित्व का परिचय न पा सका
प्रेम और अवसाद
के मध्य मेरे जीवनकाल
पर प्रश्नचिन्ह लग गया
स्वयं के चरितार्थ एवं
अस्तित्व केअंतस पर
सूक्ष्म सा विराम लग गया
मेरे जीवन की शब्दावली में
अवश्य ही समझ के अभाव में,
मात्रा और वर्तनी का सही प्रयोग नहीं हुआ
संभावनाओं के मध्य तुम्हारे
संबंध को जीवित रखने का
प्रयास मेरा असफल रहा
मेरे जीवन में सुख
और दुख के मध्य शून्यता की
परिभाषा मात्र रह गयी
जैसे मेरा स्वयं कुछ
रह नहीं गया
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश