कुछ दोहे- प्रतापनारायण मिश्र

बड़ा कौर खालो मगर, बड़ा न बोलो बोल
होते अपने आप में, बोल बड़े अनमोल

बहुत जटिल है स्वयं में, जीवन का भूगोल
जान रहे इसको सभी, यह दुनिया है गोल

जान-समझकर स्वयं को, बन जा आत्मप्रकाश
धरती पर रहकर खड़ा, छू सकता आकाश

बालक माता-पिता से, सीखे जीवन- कर्म
क्या करना है क्या नहीं, इतना जीवन- धर्म

प्यास स्वयं ही प्रार्थना, गहन बोध ही मुक्ति
तुम ही आत्मप्रकाश हो, भुक्ति-मुक्ति उन्मुक्ति

-प्रतापनारायण मिश्र
बाराबंकी (उप्र)