Saturday, April 27, 2024
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टूटती-बिखरती संस्कृति और संस्कार- त्रिवेणी कुशवाहा

राहुल अपनी शिक्षा पूरी करके एक मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत था। महानगरीय जीवनशैली के खान-पान, रहन-सहन तथा बोलचाल में पूरी तरह रंग-बस गया था। वहीं बोलने के लिए आधे अधूरे शब्दों का प्रयोग करता था, अरे यार, हाय, हाउ इत्यादि।
राहुल को अपने गांव से आये एक दशक हो गये थे। गांव के विद्यालय से बारहवीं की परीक्षा के साथ ही महानगर में उच्च शिक्षा के लिए आ गया था।
राहुल के दादाजी तथा पिताजी ने भी उसके सपनों की उड़ान के लिए अपने सपनों की बलि चढ़ा दिया था। राहुल बीच-बीच में कभी कभार अपने पिता से बात भी कर लेता था, परन्तु दादा से बात करने के लिए समयाभाव का बहाना बना देता था।
राहुल महानगर में ही अपनी कम्पनी में कार्यरत सहकर्मी के साथ प्रेम विवाह कर लिया था तथा दोनों साथ ही रहते थे और इस बात को अपने माँ-बाप तथा दादा को बताना उचित नहीं समझा था। छः महीने बितने के बाद राहुल ने अपनी माँ से अपने विवाह की बात बताया था।
दादाजी के तबीयत अधिक खराब होने तथा पोते को देखने की इच्छा व्यक्त करने पर कई बार अपने माता-पिता के कहने पर राहुल अपनी पत्नी चमेली के साथ घर पहुंचा था।
जहाँ पहले कोई भी व्यक्ति परदेश से घर पहुँचने पर माँ-बाप तथा गांव के बुजुर्गों का पाँव छूकर अपने को कृतार्थ समझते थे, वहीं राहुल दशक बाद घर आने पर भी किसी का पाँव छूना तो दूर हाय, हैलो भी नहीं बोला और अपनी माँ से अपने रहने का कमरा पूछकर अपनी महबूबा चमेली के साथ नजरबंद हो गया।
दादाजी द्वारा राहुल को देखने की इच्छा व्यक्त करने पर तथा अपने माताजी के बार-बार कहने पर राहुल अपने दादा के सामने आया तथा हाय दादा कहते हुए हाथ हिलाते फिर से नजरबंद हो गया।
दादाजी जी भी अपने लाडले पोते राहुल के इस व्यवहार को समझ न पाये तथा अपने पुराने यादों में खो गये। जब राहुल तीन साल का था तभी से अपने दादा के पास ही ज्यादा रहता था उसके दादा उसको हमेशा रेवड़ी मिठाई तथा मूँगफली देते रखते थे । साथ ही राजा-रानी तथा हांथी-घोड़ो के रोमांचकारी किस्से भी सुनाते रहते थे।
राहुल भी अपने दादाजी के इस कहानियों को बड़े ध्यान से सुनता तथा पीठ पर चढ़कर पाँव से दबा कर दादा के शरीर के दर्द को दूर कर देता था। दादाजी के प्यार-दुलार ने राहुल में कुछ शैतानियत हरकतों को जन्म दिया था जिससे उसके पिता नाराज रहते थे तथा राहुल के दादाजी से कहते रहते थे कि आपके लाड़-प्यार ने राहुल को मनबढ़ बना दिया है। जिसपर राहुल के दादाजी कहते थे कि बच्चा है बड़ा होगा समझ जायेगा। इस नेह-स्नेह के साथ राहुल कब बारहवीं पास कर उच्च शिक्षा के लिए महानगर चला गया। उसके दादा को भी समय का पता न चला तथा आज राहुल के इस व्यवहार को देखकर उसके दादा के मन को बहुत ठेस पहुंची थी। इसी समय कोरोना का लाकडाउन घोषित हो गया तथा लोगों को सामाजिक दूरी पालन करने की सरकार से अधिसूचना जारी हुई। इसी बीच राहुल के दादाजी तबीयत के अधिक खराब होने के कारण स्वर्ग सिधार लिये। जबकि उनको कोरोना वायरस से कोई लगाव-छूआव नहीं था।
राहुल अब समझदार हो चुका था तथा अपने दादाजी के दाह-संस्कार में कोरोना के सामाजिक दूरी का पालन करते हुए जाने से मना कर दिया था। राहुल के पिता ने अपने गांव के सहयोगियों के साथ अपने पिता का दाह संस्कार किया।
राहुल के इस समझदारी को क्या संज्ञा दे इतनी शिक्षा होते हुए संस्कृति और संस्कार को ताक पर रख दिया तथा सुरक्षा का ध्यान रखते हुए भी अपने दादा के अंतिम संस्कार में शामिल नही हुआ।

-त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’

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