मधुमास- आनंद सिंह चौहान

सुमधुर है मधुमास, पल्लवित है बगियाँ
आया है फूलों का मौसम हर्षित हैं सखियां
हिलोरें लेने लगा है कवियों की कल्पना का सागर
अल्हड़ चलने लगी है नवयौवना माथे पर रख गागर
मेलों के रेलों को लेकर आया है इतराता मधुमास
बन्द हुई कुंठाओं की सीपियां हर दिल में है आस
टेसुओं ने रंग ओढ़ा, रुत फाल्गुन की भी आई है
बागों की हरियाली ऋतुराज का संदेश लाई है
रौनक है हर तरफ बंद होगी अब बनिये की बही
उदास थी घड़ी की सुइयाँ वे भी आज मुस्करा रही
कोयल की कूके है मदहोश भ्रमरों का गुँजन है
कलियों के गोरे मुखड़े पर सजती आँखों में अंजन है
सुप्रभात में भाखर के पीछे है सूरज की लालिमा
खुशबू फैली है कपूर सी शरमा के छुप गई है कालिमा
जगाने हजार आरजू दिल में फिर बसंत आया है
जैसे किसी नवोढ़ा का रूठ गया कंत आया है।

-आनंद सिंह चौहान