वही ख्वाब हूँ मैं- रूची शाही

तूने जिसे तोड़कर है फेंका, वही तो ख्वाब हूँ मैं
दर्द भी हद से ज़्यादा हूँ मैं, अश्क भी बेहिसाब हूँ मैं

तेरी बेरुखी को सह कर भी, रही मेज़ पे पड़ी मैं
बड़ी बेदिली से पढा है तूने, हाँ वही किताब हूँ मैं

टूट कर बिखरा है जो,हूँ वो अश्क़ों की हकीकत
पैमानें से छलक रही है जो, हाँ वही शराब हूँ मैं

सुकून थी जब तक मैं, मुझे ओढ़ कर सोया समंदर
अब भंवर के संग है चला जो, हाँ वही इज़्तिराब हूँ मैं

मेरा वजूद ही आखिर क्या, तेरे आगे ऐ मुहब्बत
मुझे छूना मत कभी भी, अश्क़ों का हुबाब हूँ मैं

-रूची शाही