अजनबी बन रह गई ये ज़िंदगी: अंजना वर्मा

अंजना वर्मा
ई-102 रोहन इच्छा अपार्टमेंट,
भोगनहल्ली, बैंगलुरु-560103
[email protected]

तोड़कर संवाद सबसे भागता क्यों जा रहा है
आदमी दो पल भी देने में बहुत कतरा रहा है

दायरे अपने सुखों के इस तरह बढ़ते गए हैं
दोस्त भी ग़ैरों के जैसा ही नज़र अब आ रहा है

सो रहे हो तुम लिहाफ़ों में तो ये भी सोच लेना
शीत का मौसम कहीं चादर में कटता जा रहा है

अजनबी बन रह गई ये ज़िंदगी सबके लिए ही
क्या कहेगी कब किसे कोई समझ ना पा रहा है

छीन लेता जो झपटकर ज़िंदगी सबकी वही तो
अंगरक्षक साथ भी लेकर बहुत घबरा रहा है