ग़म नहीं है- दिव्यांशु आशीष

बस तुम्हें सब कुछ समझ, मैंने इबादत की तुम्हारी
पर गये तुम मार ठोकर, कहा मुझको अहंकारी
इस जमाने में खामोशी भी बहुत कुछ बोलती है,
पढ़ ना पाये तुम अगर तो, क्या खता इसमें हमारी?
तुम गये, पर प्रेम मेरा आज भी कुछ कम नहीं है
जाना तुझे तो शौक से जा, अब मुझे कुछ ग़म नहीं है

टूट कर तारे, चले जाते गगन को छोड़ जैसे
तुम गये मेरे हृदय से, छोड़ मुझको ठीक वैसे
भूलने को तो भुला देंगे तुझे बस एक पल में,
पर बता यादों को तेरी, भूल हम पाएंगे कैसे?
मेरे सीने में भी दिल है, पत्थर की मूरत हम नहीं हैं
जाना तुझे तो शौक से जा, अब मुझे कुछ ग़म नहीं है

खुश रहे भगवान गर तो, फिर मजा क्या बन्दगी का?
दिल ही गर जो साफ ना हो, फिर मजा क्या सादगी का?
प्रेम बस मिल जाये गर, फिर हम भला क्या और माँगे
पर प्रेम कर बिछड़े नहीं तो, फिर मजा क्या जिन्दगी का?
हम ना बदलेंगे कभी भी, हम कोई मौसम नहीं हैं
जाना तुझे तो शौक से जा, अब मुझे कुछ ग़म नहीं है

-दिव्यांशु आशीष