एक निहायत निजी: वंदना मिश्रा

प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर-231001

एक निहायत
निजी और पीड़ादायक
मुक़दमे के दौरान जाना कि
आपके लिए बेहद ज़रूरी
संस्मरण
और दुःखों के लिए
अदालत के पास
कोई समय और संवेदना नहीं

उन्हें जल्दी से निपटाने हैं
(हालाँकि निपटा नहीं पाते )
मुक़दमे
उन्हें लगता है कि नहीं देना चाहिए
पन्द्रह सालों की पीड़ा के लिए
पन्द्रह वाक्य बोलने की इज़ाजत

हम अपनी उन
कराहों और बुद्बुदाहटों
को कहाँ लेकर जाए
जो अटती नहीं
अदालत के विशाल कक्ष में

हमारी छुटपुट पीड़ा
व्यक्त करती हैं फिल्में
जिन्हें सराह कर देखती है
पूरी न्यायपालिका
बिना लिप्त हुए

बीमारियों के दौरान जाना
कि आपकी पीड़ा
और यहाँ वहाँ होते दर्द के लिए
डॉक्टर की
चलती उंगलियों की रफ्तार
कम नहीं हो सकती
आपके लिए एक
‘प्रिसक्रिप्शन’ भर
जगह है
उनके पास और उतना ही वक्त

आप उनके लिखने तक
बोल सकते हैं
और हर वाक्य पर
बढ़ जाती है एक दवा
उनकी नजर कागज़ से उठी
और आप बाहर कर
दिए जाते हैं
दवाइयों के फ़ेहरिस्त के साथ

हो सकता है ये
पेशागत मजबूरियां हो

पर याद आते हैं
इन जगहों से निकलने के
बाद कितने भूले ग़म,

अपना दर्द और भी
सताता है दवा खाने में