रानी दुर्गावती: चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का
दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।

उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने

उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी

युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी

दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था

साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था
बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था

एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया

बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया

दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा

एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान

घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा

आती हैें जीवन मेे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे

पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ

रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खाॅ को तब सेना दे भेजा लडने

बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खाॅ सा सेनानी भी तीन बार उससे हारा

तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका

तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार

युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार

तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात

भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ

छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार

तभी फंसी रानी को आकर लगा आॅख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान

सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विष्वाश

फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से यद्यपि हार का था आभास

क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढें जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार

घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार

स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है माॅ रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में

महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे गोैडवाने मे जन जन से जो गई सराही थी

असमय विधवा हुई थी रानी माॅ बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में

जीकर दुख मे अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण

है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहाॅ हुई गौडो की मुगलों से हार

कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार

कभी दगा देती यह दुनियाॅ कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ और हुआ होता इतिहास