तेरी पहचान: तबस्सुम सलमानी

ये तेरी अपनी पहचान है जाना,
किसी के गलत कह देने गलत हो थोड़ी जायेगी
और तुझे डर किस बात का है आखिर,
क्या किसी के गिरा देने से
तू दोबारा उठ नहीं पाएगी?
तू वो हासिल करके दिखा,
जिसकी किसी को आस नहीं,
तू दूर क्यों खड़ी है भला कुंवा तो तेरे पास ही है,
क्या तुझे अभी प्यास नहीं?
खुला आसमान तो हैं तेरे पास,
क्या उड़ान भरने का अभी कोई एहसास नहीं?
तू मेरी बात सुन और समझले ज़रा,
पैरों में बेड़ियां पड़ भी जाए तू रुकना नहीं,
कोई तुझे कितना भी डराए तू झुकना नहीं,
गिर कर उठना है तुझे, फिर से संभलना है तुझे
पैरों में ज़ख्म हैं पर चलना है तुझे,
पंख छोटे ही सही पर उड़ना है तुझे
अगर सिर्फ सोचा दुनिया और समाज के बारे में,
तो अपने सपने कभी पूरे नहीं कर पाएगी
इज्ज़त की फ़िक्र तो तू ना ही कर,
जब इज़्ज़त के मालिक ने ही इज्जत दे दी
तो चंद लोगों के ना करने से,
इज्जत तेरी कम हो नहीं जायेगी।
तू पहचान बना अपना नाम बना,
क्योंकि बिना मेहनत तो यूं रोशन तू हो नहीं पाएगी
और हां तू घबरा मत भरोसा रख,
खुद पर और खुदा पर भी, याद रख और चलती जा,
रास्ते में डगमगा तो जायेगी, पर हार नहीं जायेगी
और यह तो तेरी खुद की पहचान है,
किसी के गलत बता देने से गलत हो थोड़ी जायेगी

तबस्सुम सलमानी
मलोया, चण्डीगढ़