तू मुहब्बत है मेरी: रूची शाही

न तुझसे अलग हूँ न मैं जुदा हूँ
तेरी सादगी हूँ मैं तेरी अदा हूँ
कहाँ दूर हूँ मैं, तू महसूस तो कर
तू मुहब्बत है मेरी, मैं तेरी वफ़ा हूँ

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फिर वही खता नहीं करना
हो सके तो राब्ता नहीं करना
दर्द जितने भी हैं, काफी हैं
अब कोई ग़म अता नहीं करना

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मुझे कोई क्या समझेगा, मैं उलझी हुई पहेली हूँ
सभी के साथ रहकर भी, मैं बस तन्हा अकेली हूँ
करूँ शिकवा तो किससे, सभी अपने, बेगाने हैं
दुखों ने मुझको पाला है, व्यथा की मैं सहेली हूँ

रूची शाही