बिखेर दे मुस्कान: डॉ सुनीता मिश्रा

आंधियां चलती रहे, आता रहे तूफान।
तू हिम्मत न हारना, मेरे दिल-ए-नादान।।

माना कि अकेला है , कोई साथ न तेरे।
तू मान ले होता है, जब आये इम्तिहान।।

है कैद दर-ओ-दीवार, आगे का रास्ता।
रख हौसला खुद में, है जिंदगी आसान।।

ऊबकर जिंदगी से, न जाना कभी बाहर।
सुनसान ये सड़क है, जंगल सी बियावान।।

घर मे अकेले बैठकर , कुछ शौक पाल ले।
तू खुद से कर बातें, और खुद से ही पहचान।।

लगता है कई बार, कोई आहट है दर में।
खुद से खुद को मिला, बिखेर दे मुस्कान।।

डॉ सुनीता मिश्रा